ये IAS हैं मिसाल, कोई था कुली तो किसी के पास नहीं था घर

भारत सरकार की अखिल भारतीय सेवाओं में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) देश की एक बड़ी जिम्मेदारी वाला पद होने के साथ सम्मान का सूचक माना जाता है. आईएएस बनने के लिये देश के लाखों युवा हर साल यूपीएससी की परीक्षा में बैठते हैं लेकिन कुछ ही प्रतिभागी इस परीक्षा में सफल हो पाते हैं. आज हम आपको कुछ ऐसे प्रशासनिक अधिकारियों से परिचय करवायेंगे जिनसे आपको प्रेरणा मिलेगी. जी हाँ, क्योंकि इन अधिकारियों ने, न सिर्फ परीक्षा की चुनौतियों का सामना किया है बल्कि ये जिस बैकग्राउंड से आते हैं वहाँ से आईएएस जैसे महत्वपूर्ण पद पर पहुंचना ही किसी मिसाल से कम नहीं है. आइये इन अधिकारियों से मिलते हैं.

विजय अमृत कुलंगे

विजय मूल रूप से महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के रालेगण गांव के रहने वाले हैं. इनके पिता दर्जी का काम करते थे वहीं माँ मजदूरी करके घर का पेट पालती थी. माता-पिता की कमाई से इतना ही पैसा मिल पाता था जिससे घर का खर्च निकल जाये. इतनी आर्थिक तंगी के बावजूद विजय एमबीबीएस करने का सपना पाल रखे थे. इसके लिए इन्होंने कक्षा 12वीं तक साइंस स्ट्रीम में पढ़ाई की थी, लेकिन आर्थिक तंगी की वजह से एमबीबीएस में दाखिला नहीं ले सके. इसके बाद इन्होंने डीएड में दाखिला लिया उसके बाद एक शिक्षक के रूप में काम करने लगे. इसी दौरान ही इन्होंने महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग की परीक्षा दी और दो बार असफल रहे. तीसरे प्रयास में इनका चयन सेल्स टैक्स अधिकारी के पद पर हो गया. सेल्स टैक्स अधिकारी के पद काम करते हुये इन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दी और 176वीं रैंक हासिल की, इसके बाद यह ओडिसा कैडर में आईएएस के पद पर नियुक्त हुये.

राम भजन

राजस्थान के बापी नामक छोटे से गाँव के रहने वाले राम भजन के पास घुद का घर नहीं था. यह पढ़ाई के साथ-साथ दिहाड़ी मजदूरी का काम करते थे. इस काम में इन्हें पत्थर तोड़ने का काम सौंपा जाता था, जबकि इनकी माँ भारी वजन उठाया करती थी. इनके पिता बकरी पाल रखे थे जिसके दूध को बेचकर थोड़े बहुत पैसे मिल जाते थे और घर का खर्च चल जाता था. कोविड-19 महामारी के दौरान अस्थमा से पीड़ित इनके पिता का निधन हो गया जिसके बाद इनका परिवार गरीबी में और अधिक घिर गया. इन्होंने अपनी मां के साथ मिल कर मजदूरी का काम किया और अपनी पढ़ाई जारी रखी. इसी दौरान इन्होंने अपनी मेहनत के बल पर दिल्ली पुलिस में कान्सटेबल की नौकरी हासिल कर ली. नौकरी पाने के बाद घर की स्थिति में कुछ सुधार हुआ और इन्होंने यूपीएससी की तैयारी जोर-शोर से शुरू कर दी. वर्ष 2022 में यह अपने 8वें प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा में सफलता हासिल कर एक आईएएस बन गये. 

दीपेश कुमारी

राजस्थान के भरतपुर की रहने वाली दीपेश अपने पाँच भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं. इनके पिता गोविंद प्रसाद 25 वर्षों तक घर का खर्चा निकालने और बच्चों की पढ़ाई के लिये चाट-पकोड़े का ठेला लगाते थे. इनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, फिर भी गोविंद ने अपने बच्चों की शिक्षा से कभी कोई समझौता नहीं किया. दीपेश भी अपने पिता की उम्मीदों पर खरा उतरी और पढ़ाई में खूब मेहनत किया. इसका नतीजा ये रहा कि दीपेश ने अपने मनपसंद कॉलेज आईआईटी-बॉम्बे से एमटेक की डिग्री हासिल कर ली. ये चाहती तो इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अपना करियर बना सकती थी लेकिन इन्होंने अपने सपने को पूरा करने का निश्चय किया और यूपीएससी की तैयारी में लग गई. अपनी मेहनत के बल पर इन्होंने वर्ष 2021 में अपने दूसरे प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा में 93वें रैंक हासिल की और आईएएस ऑफिसर बन गई.

श्रीनाथ

“इरादे अगर मजबूत हों तो मंजिल पाना आसान हो जाता है” इस कहावत को चरितार्थ करने वाले श्रीनाथ केरल के मुन्नार से सम्बन्ध रखते हैं. यह एर्नाकुलम स्टेशन पर कुली का काम करते थे और यह अपने घर में अकेले कमाने वाले सदस्य हैं. इन्होंने अपनी बेटी की शिक्षा के साथ कभी समझौता नहीं किया और चाहते थे की उनकी बेटी सफल बने. इसके लिये इन्होंने कड़ी मेहनत कर सिविल सेवा की परीक्षा में बैठने का फैसला किया. इनके पास कोचिंग के लिये पैसे नहीं थे तो यह कुली के काम के साथ-साथ स्टेशन पर ही वाई-फाई की मदद से ऑनलाइन लेक्चर व स्टडी मटेरियल का अध्ययन करने लगे. इन्होंने सर्वप्रथम केरल लोक सेवा आयोग (KPSC) की परीक्षा में भाग लिया और सफलता हासिल की. इस परीक्षा को पास करने के बाद इनके अंदर जबरदस्त कॉन्फिडेंस आया और यह यूपीएससी की तैयारियों में जुट गये. इनकी मेहनत का नतीजा ये रहा कि अपनी बेटी को सफल बनाने के लिय यह खुद अपने चौथे प्रयास में आईएएस आफिसर बन गये.

गोविंद जायसवाल

उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले गोविंद जायसवाल के पिता एक रिक्शा चालक थे. इनके पिता कभी रिक्शा कंपनी चलाते थे जिनके पास 35 रिक्शे थे, लेकिन इनकी माँ ब्रेन हैमरेज का शिकार हुई और उनके इलाज के खर्च में पिता को ज्यादातर रिक्शे बेचने पड़े. बाकी जो रिक्शे बच गये थे उसे उन्हें तीन बेटियों की शादी में खर्च के लिये बेचना पड़ा. गोविंद 7वीं कक्षा में ही थे तभी इनकी माँ का निधन हो गया जिसके बाद इनके पिता खर्च चलाने के लिये रिक्शा चलाने लगे. इनके पिता ने पढ़ाई में कभी कोई कमी नहीं होने दी और अपने बेटे गोविन्द को कोचिंग के लिये दिल्ली भेजा. दिल्ली में परीक्षा की तैयारी के दौरान गोविंद ने रुपये बचाने के लिये एक टाइम का टिफिन लेना बंद कर दिया था. अपनी मेहनत और लगन के बल पर गोविंद ने वर्ष 2007 में अपने पहले ही प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा में 48वीं रैंक हासिल कर आईएएस अधिकारी बन गये.