अब खेती के लिये नहीं होगी खेत की जरूरत, ये हैं एडवांस एग्रीकल्चर तकनीकी!

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जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा और स्थिरता की चुनौतियों का सामना करने के लिए नवीन तरीकों के उभरने के साथ, पिछले कुछ वर्षों में कृषि के क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास हुआ है. आज, किसान और कृषि उद्यम आधुनिक तकनीकों को अपना रहे हैं जो उपज को तो बढ़ाते ही हैं साथ ही संसाधनों का संरक्षण करते हैं और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देते हैं. आज हम आपको कुछ ऐसी कृषि पद्धतियों के बारे में बतायेंगे जो आजकल काफी प्रचलित हो रही हैं और खेती के भविष्य को आकार दे रही हैं.

हाइड्रोपोनिक्स

यह मिट्टी के बिना पोषक तत्वों से भरे पानी के घोल का उपयोग करके की जाने वाली खेती की विधि है. इस तकनीक में पौधे तेजी से और स्वस्थ रूप से बढ़ते है क्योंकि उन्हें सटीक और संतुलित पोषक तत्व प्राप्त होते हैं. इसका उपयोग आमतौर पर शहरों में व जमीन की उपलब्धता न होने वाले क्षेत्रों में किया जाता है. हाइड्रोपोनिक खेती में पानी का संरक्षण भी होता है क्योंकि इस तकनीक से पानी को पुनः उपयोगी बनाया जाता है, जिससे पारंपरिक मिट्टी-आधारित खेती की तुलना में इसमें पानी का उपयोग 90% तक कम हो जाता है. यह विधि आमतौर पर पत्तेदार सब्जियों, जड़ी-बूटियों और अंगूर व स्ट्रॉबेरी जैसी फसल के लिए विशेष रूप से फायदेमंद होती है.

एरोपोनिक्स

एरोपोनिक्स, हाइड्रोपोनिक्स तकनीत का ही एक उन्नत रूप है जिसमें पौधों की जड़ों को हवा में लटकाया जाता है और पोषक तत्वों से भरपूर पानी का उन पर छिड़काव किया जाता है. यह विधि पौधों के तेजी से विकास, अधिक पैदावार और बेहतर पोषक अवशोषण को बढ़ावा देती है. एयरोपोनिक्स तकनीक अत्यधिक मात्रा में जल का बचाव करती है क्योंकि इसमें पारंपरिक कृषि की तुलना में 95% कम पानी का उपयोग होता है. यह तकनीक आलू, टमाटर और लेट्यूस सहित विभिन्न प्रकार की फसलें उगाने के लिए उपयोगी है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा अपने न्यूनतम संसाधन वाले अंतरिक्ष अभियानों में इस कृषि पद्धति का उपयोग करती है.

ऑर्गैनिक फॉर्मिंग

जैविक खेती सिंथेटिक उर्वरकों, कीटनाशकों या आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (जीएमओ) के बिना फसल उगाने पर केंद्रित होती है.इसमें मिट्टी के स्वास्थ्य और उत्पादकता को बनाए रखने के लिए प्राकृतिक खाद, फसल चक्र और जैविक कीट नियंत्रण का उपयोग होता है. वर्तमान समय में लोग स्वास्थ्य लाभ और पर्यावरणीय स्थिरता के कारण जैविक उत्पादों को अधिक पसंद कर रहे हैं. यह विधि जैव विविधता को तो बढ़ाती ही है इसके साथ मिट्टी की उर्वरता में सुधार करती है और कृषि रसायनों से होने वाले प्रदूषण को भी कम करती है.

वर्टिकल फॉर्मिंग

वर्टिकल खेती, खेती करने का एक नया दृष्टिकोण है जिसमें कृषि अनुकूल नियंत्रित पर्यावरण (सीईए) तकनीक का उपयोग करके फसलों को अक्सर इनडोर रूप से क्रमिक परतों में उगाया जाता है. खेती की यह विधि कम जगह में अधिक उत्पादन करती है और साल भर उत्पादन देती है. वर्टिकल फार्म में पौधों के विकास को नियंत्रित करने के लिए एलईडी प्रकाश व्यवस्था, जलवायु नियंत्रण और ऑटोमेशन आदि का उपयोग करते हैं. AeroFarms और Plenty जैसी कंपनियों ने शहरी क्षेत्रों में न्यूनतम पानी और कीटनाशकों के उपयोग को कम करने के लिए इस तकनीक को लोकप्रिय बनाया है.

एक्वापोनिक्स

एक्वापोनिक्स एक टिकाऊ कृषि पद्धति है जो हाइड्रोपोनिक्स के साथ एक्वाकल्चर (मछली पालन) को एकीकृत करती है. इस प्रणाली में, मछली का अपशिष्ट पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है, जबकि पौधे मछली के लिए पानी को शुद्ध करने में मदद करते हैं. इसमें बंद-लूप पारिस्थितिकी तंत्र अपशिष्ट को काफी कम करता है और पानी का संरक्षण करता है. एक्वापोनिक्स तिलापिया और ट्राउट जैसी मछली प्रजातियों के साथ-साथ लेट्यूस, तुलसी और टमाटर जैसी सब्जियां उगाने के लिए आदर्श मानी जाती है.

प्रेसिजन एग्रीकल्चर

सटीक कृषि या प्रेसिजन एग्रीकल्चर, खेत में संसाधनों का सही तरीके से इस्तेमाल करने का एक तरीका है. इसमें जीपीएस, आईओटी सेंसर और एआई-संचालित एनालिटिक्स जैसी एडवांस तकनीक का उपयोग किया जाता है. यह विधि किसानों को वास्तविक समय में मिट्टी की स्थिति, मौसम के पैटर्न और फसल स्वास्थ्य की निगरानी करने में सक्षम बनाती है. इसमें ड्रोन, स्वचालित ट्रैक्टर और सैटेलाइट इमेजरी के द्वारा सटीक रोपण, उर्वरक और सिंचाई, संसाधन बर्बादी को कम करने और पैदावार को अधिकतम करने में मदद करते हैं. यह खेती तकनीक पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हुए उत्पादकता और स्थिरता को बढ़ाती है.

रीजेनरेटिव फॉर्मिंग

पुनर्योजी कृषि या रीजेनरेटिव एग्रीकल्चर, कम जुताई वाली खेती है जो कवर फसल और चक्रीय चराई जैसी प्रथाओं को शामिल करके मिट्टी के स्वास्थ्य को बहाल करने पर केंद्रित होती है. यह विधि जैव विविधता को बढ़ाती है, जल प्रतिधारण में सुधार करती है, और मिट्टी में कार्बन अवशोषण को बढ़ाती है, जिससे जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद मिलती है. पुनर्योजी कृषि करने वाले किसानों का लक्ष्य उच्च गुणवत्ता वाली फसलें और पशुधन पैदा करते हुए मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाना है.

पर्माकल्चर

पर्माकल्चर एक समग्र कृषि दृष्टिकोण है जो प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को कृषि परिदृश्य में एकीकृत करता है. खेती की यह तकनीक जैव विविधता, जल संरक्षण और न्यूनतम बाहरी इनपुट पर जोर देती है. पर्माकल्चर विधि अपनाने वाले किसान अपने खेतों को इस प्रकार से डिज़ाइन करते हैं जिसमें कम जगह में अधिक फसलों का उत्पादन हो सके. इस विधि में मिट्टी को लकड़ी के छोटे टुकड़ों, पत्तियों, घास, पुआल, आदि से ढक कर रखा जाता है. जिससे खरपतवार की समस्या भी कम होती है और सिंचाई के समय पानी की भी बचत होती है.

नियंत्रित-पर्यावरण कृषि

सीईए एक आधुनिक कृषि तकनीक है जिसमें ग्रीनहाउस या इनडोर खेतों जैसे अत्यधिक नियंत्रित वातावरण में फसलें उगाई जाती हैं. इसमें पौधों की वृद्धि को अनुकूलित करने के लिए स्वचालन, कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था और जलवायु नियंत्रण प्रणालियों का उपयोग किया जाता है. यह तकनीक किसानों की मौसमी परिवर्तनों पर निर्भरता को कम करती है, जिससे साल भर खेती संभव हो जाती है. सीईए का व्यापक रूप से स्ट्रॉबेरी, जड़ी-बूटियों और औषधीय पौधों जैसी उच्च मूल्य वाली फसलों के उत्पादन के लिए उपयोग किया जाता है.

एग्रोफॉरेस्ट्री

एग्रोफॉरेस्ट्री या कृषिवानिकी, फसलों के साथ-साथ पेड़ों व झाड़ियों को समुचित प्रकार से लगाकर की जाने वाली कृषि पद्धति है. यह जैव विविधता और स्थिरता को बढ़ाने के लिए पेड़ों की खेती को पारंपरिक खेती के साथ जोड़ती है. इसमें पेड़ छाया प्रदान कर मिट्टी का कटाव कम करते हैं और कार्बन अवशोषण में सुधार लाते हैं. इसमें कृषि और वानिकी की तकनीकों का मिश्रण करके विविधतापूर्ण, लाभप्रद, स्वस्थ एवं टिकाऊ भूमि-उपयोग सुनिश्चित किया जाता है.